लेखनी प्रतियोगिता -03-Apr-2022 बेरोजगार
रचयिता-प्रियंका भूतड़ा
शीर्षक-बेरोजगारी
पढ़ा था मैं कुछ आगे बढ़ने के लिए
दिन रात किए मैंने एक, कुछ करने के लिए
💯 डिग्री लाया था मैं
मेरी मां सोती भूखी, मुझे पेट भर खाना खिलाती
मेरे सपने को बड़ा करने के लिए खुद मेहनत करती
आऊंगा जब मैं अव्वल
बनूंगा मैं बड़ा ऑफिसर
आरक्षण ने दिया अपना कमाल
छीन कर ले गया मेरा सपना, मन में बचा बवाल
50 डिग्री वाले बने ऑफिसर
100 डिग्री वाले बैठे घर
टूट गई मेरी आशा
सोच में था मैं क्या करूं अब
नहीं मिला मुझे, मां का सपना पूरा करने का मौका
अधूरा रह गया मेरा सपना
हो गया मैं बेरोजगार
को ही नहीं मिला मुझे रोजगार
जिंदगी से मिली मुझे निराश
हो गया मैं दुनिया से हताश
आज मैंने देखा दुनिया में
हो रहा है भ्रष्टाचार
भारत में एक नहीं मेरे जैसे लाखों हैं
ए दोस्त दुनिया कहती है
पढ़ा-लिखा कलमकार, घर बैठा है बेकार
करते हैं सब इनका तिरस्कार
तिरस्कार की पीड़ा सहकर
बनते हैं अंधभक्त
कुछ युवा नेता बनते
कुछ बनते आतंकवाद
बेरोजगार को रोजगार दिलाओ
उनके सपनों को पूरा कराओ
जिससे समाज में अंधविश्वास ना पहले
जिससे ना बने कोई अंधभक्त या आतंकवाद
Shrishti pandey
04-Apr-2022 09:36 PM
Nice
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Niraj Pandey
04-Apr-2022 03:21 PM
बहुत खूब
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Shnaya
04-Apr-2022 03:01 PM
Very nice
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